Thursday 23 August 2007

लापरवाही से ही...


लापरवाही से ही उसका कभी ख़याल कर लेना
जिसके जिस्मो- जान में बस चुकी हो तुम !
जब मुमकिन ना लगे किसी सपने का सच होना
अपना गुमान जिंदा रखना, किसी फैसले पे मत रोना !
तेरा हर फैसला क्यूँकि मुहब्बत की तस्वीर तो है
और ये गुमान इक नादान की बिगड़ती तकदीर तो है !
तेरा 'होना' ही सब कुछ है इस जहाँ में
हाँ, उसके लिए तेरी ज़ुबाँ हमेशा हो गुमसुम,
जिसके जिस्मो- जान में बस चुकी हो तुम !
तुम जानना मत उसके भीतर के उफान को
ना समझना कभी इक खामोश तूफान को !
बस, आती रहे बरवक़्त ये लहरों की मार
हो सके ताकि किसी तूफ़ान का उदगम बेकार !
जानो, ना जानो कभी नादान की मुहबात
बस, मुहब्बत का तूफ़ान तुझे हो मालूम,
जिसके जिस्मो- जान में बस चुकी हो तुम !
अपनी मादकता के महल में बेशक तू प्रहरी लगा ले
जब कोई तेरी मुहब्बत की आड़ में तुझको दगा दे !
किसी की शराफत को याद कर ना कोई मलाल रखना
खुद की चंचलता में ही खुद को निहाल रखना !
चहरे पर बस शिकन- ही- शिकन दिखने लगी
क्यूँकि कहाँ रही कोई मासूमियत, कहाँ रहा कोई मासूम,
जिसके जिस्मो- जान में बस चुकी हो तुम !
-"प्रसून"

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