Monday, 17 September 2007

प्रिय का ख़त आया है

व्याकुल हृदय हमारा
प्रिय का ख़त आया है
कुछ शब्दों ने दिल को छुआ
कुछ ने ख़ूब भरमाया है ।
बेचैनी है ख़त में
कहीँ- कहीँ शिकायत है --
प्रिय, तुम बिन ज़िन्दगी
नहीं कहीँ सलामत है
आ जाओ अब सामने
कि नशा तेरा पोर- पोर में छाया है ।
इस सूनी राह पर
कटता नहीं इक दिन का सफ़र
दिल ने देखकर तुझको
चुन लिया है अपना हमसफ़र
क्यों अब भी ये दूरी प्रिय
इस धूप के सफ़र में मिलती नहीं छाया है !
आज से ही राह तकूंगी
रखना ज़रा ख़याल इसका
न आने पर जो शिकवा होगा
दिल में न रखना मलाल उसका
तेरी बेरुखी ने ही दिलबर
गिला करना मुझको सिखाया है ।
आज अब रात घनी हो चुकी है
कल डाक से ख़त भेजूंगी
अतीत की यादों को हमदम
दिल में मैं सहेजूंगी
मन ने मेरे मुझको फिलवक्त
यही करने को समझाया है --
व्याकुल हृदय हमारा
प्रिय का ख़त आया है !
- "प्रसून"

2 comments:

रंजू भाटिया said...

आप अच्छा लिखते हैं अमिय
इस रचना के भाव बहुत सुंदर हैं ..

डाॅ रामजी गिरि said...

कुछ शब्दों ने दिल को छुआ
कुछ ने ख़ूब भरमाया है ।
बेचैनी है ख़त में
कहीँ- कहीँ शिकायत है --

सुन्दर रचना है प्रेम -संवाद पर. . ख़त की बातें प्रासंगिक है उस विरह के पल के लिए....