देखो तो मेरी दीवानगी,
हर तस्वीर में अब मैं
ढूँढने लगा हूँ तुम्हें
तुम्हें महसूस करता हूँ
अपने सिरहाने, अपने मन के करीब।
देखो तो मेरी दीवानगी,
अपनी खिड़की की छिटकनी पर
अपनी आंखों के सामने
टांग दी है इक तस्वीर
दुनिया जिसे 'सरस्वती' मानती है
और यही अब पराकाष्ठा है
मेरी कथित नास्तिकता की।
देखो तो मेरी दीवानगी,
तुम्हारे हर ख्वाब को
देखती हैं मेरी आँखें
तेरी सारी इच्छाओं से
पटी पड़ी हैं मेरी स्वप्निल रातें
क्यूंकि सार्थकता है मेरे 'जगने' की
तेरे इन नायाब सपनो से।
देखो तो मेरी दीवानगी,
ख़ुद को कितना गुनहगार पाता हूँ
तेरी निश्छल आंखों के प्रांगण में
जब आता हूँ वहाँ मचलकर
और मेरा आवारा मन
अपेक्षाएं रखने लगता है तुमसे
किसी असीम उत्तेजना की।
देखो तो मेरी दीवानगी,
तुम्हें हर पल खोजता हूँ
तुम्हारी ही तस्वीर में
उतरती हैं तेरी आवाजें
मेरी धडकनों की गहराई में
तेरी ही आवाजों से छनकर
और पाता हूँ तुम्हें मैं
तुम्हारे भीतर ही निराकार रूप में
बरक़रार रह जाता है मेरा संशय फ़िर
'साकार'- 'निराकार' की मौजूदगी को लेकर।
देखो तो मेरी दीवानगी,
तुम क्यूं नहीं आ पाती
प्रत्यक्ष रूप में मेरे सामने,
क्यूं नहीं मैं पाता तुम्हें
अपनी निष्कपट पलकों के पीछे!
देखो तो मेरी दीवानगी,
जो खींचता हूँ मैं लकीरों को
लिखता हूँ किस-किसका नाम
अपनी 'अनामिका' ऊँगली से
शांत पानी की सतह पर...!
- "प्रसून"
हर तस्वीर में अब मैं
ढूँढने लगा हूँ तुम्हें
तुम्हें महसूस करता हूँ
अपने सिरहाने, अपने मन के करीब।
देखो तो मेरी दीवानगी,
अपनी खिड़की की छिटकनी पर
अपनी आंखों के सामने
टांग दी है इक तस्वीर
दुनिया जिसे 'सरस्वती' मानती है
और यही अब पराकाष्ठा है
मेरी कथित नास्तिकता की।
देखो तो मेरी दीवानगी,
तुम्हारे हर ख्वाब को
देखती हैं मेरी आँखें
तेरी सारी इच्छाओं से
पटी पड़ी हैं मेरी स्वप्निल रातें
क्यूंकि सार्थकता है मेरे 'जगने' की
तेरे इन नायाब सपनो से।
देखो तो मेरी दीवानगी,
ख़ुद को कितना गुनहगार पाता हूँ
तेरी निश्छल आंखों के प्रांगण में
जब आता हूँ वहाँ मचलकर
और मेरा आवारा मन
अपेक्षाएं रखने लगता है तुमसे
किसी असीम उत्तेजना की।
देखो तो मेरी दीवानगी,
तुम्हें हर पल खोजता हूँ
तुम्हारी ही तस्वीर में
उतरती हैं तेरी आवाजें
मेरी धडकनों की गहराई में
तेरी ही आवाजों से छनकर
और पाता हूँ तुम्हें मैं
तुम्हारे भीतर ही निराकार रूप में
बरक़रार रह जाता है मेरा संशय फ़िर
'साकार'- 'निराकार' की मौजूदगी को लेकर।
देखो तो मेरी दीवानगी,
तुम क्यूं नहीं आ पाती
प्रत्यक्ष रूप में मेरे सामने,
क्यूं नहीं मैं पाता तुम्हें
अपनी निष्कपट पलकों के पीछे!
देखो तो मेरी दीवानगी,
जो खींचता हूँ मैं लकीरों को
लिखता हूँ किस-किसका नाम
अपनी 'अनामिका' ऊँगली से
शांत पानी की सतह पर...!
- "प्रसून"