हर कोई सिसका तेरी तस्वीर को चूम
चले गए यहाँ से जब तुम !
बाग़ का हर फूल तक रोया
कोयल ने 'कू-कू' को खोया,
कलियों ने भी बंद की ठिठोली
हुई खत्म जुगनुओं की आँखमिचौली !
रातें काट खाने को दौड़ी
दिन भी सारे हो गए गुमसुम,
चले गए यहाँ से जब तुम !
फीकी हुई अब घर की रंगोली
गम से खेली अबकी होली,
दीवारों ने खोया अपना चूना
हुआ चुहलबाजी का आंगन भी सूना !
चली गयी है सारी रौनक
हर कोने को है मालूम,
चले गए यहाँ से जब तुम !
तुम थे तो आते थे 'पिंकू-पिंकी'
आज भरी है आंसुओं से हर टंकी,
बाबूजी की तब जमती थी महफ़िल
अब जमघट की बात भी मुश्किल !
ख़त्म करो बुजुर्गों की चर्चा
बच्चे भी कहाँ ठहरे मासूम,
चले गए यहाँ से जब तुम !
- "प्रसून"
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