Friday 3 August 2007

चले गए यहाँ से जब तुम...

हर कोई सिसका तेरी तस्वीर को चूम
चले गए यहाँ से जब तुम !


बाग़ का हर फूल तक रोया
कोयल ने 'कू-कू' को खोया,
कलियों ने भी बंद की ठिठोली
हुई खत्म जुगनुओं की आँखमिचौली !


रातें काट खाने को दौड़ी
दिन भी सारे हो गए गुमसुम,

चले गए यहाँ से जब तुम !

फीकी हुई अब घर की रंगोली
गम से खेली अबकी होली,
दीवारों ने खोया अपना चूना
हुआ चुहलबाजी का आंगन भी सूना !

चली गयी है सारी रौनक
हर कोने को है मालूम,

चले गए यहाँ से जब तुम !

तुम थे तो आते थे 'पिंकू-पिंकी'
आज भरी है आंसुओं से हर टंकी,
बाबूजी की तब जमती थी महफ़िल
अब जमघट की बात भी मुश्किल !

ख़त्म करो बुजुर्गों की चर्चा
बच्चे भी कहाँ ठहरे मासूम,
चले गए यहाँ से जब तुम !


- "प्रसून"

No comments: