Friday 24 August 2007

हर जगह मेरा 'होना' है


मेरा 'होना', ना 'होना' मेरी पहचान नहीं
मैं कहीँ होऊँ, हर जगह मेरा 'होना' है !


ना किसी की रूह का मैं पर्याय हूँ
ना कोई मेरी आत्मा का है प्रशंसक,
मेरी ज़ुबाँ का हमदम बन सका ना कोई
किसी के लिए बोली मेरी बनी रही विध्वंसक !


किसी की कम्ज़ोरी का यहाँ हमेशा शिकार होता रहा
और संजीवनी के स्पर्श से ही आत्म- विकार होता रहा
मेरा 'हँसना' किसी का 'हँसना' कभी हो, ना हो
'ग़र मेरा 'रोना' सचमुच किसी का 'रोना' है, तो


मेरा 'होना', ना 'होना' मेरी पहचान नहीं
मैं कहीँ होऊँ, हर जगह मेरा 'होना' है !


मेरे हर छिछले अंदाज़ ने हरदम किसी को नाखुश किया
ना रह किसी की दोस्ती के लायक मेरा हाथ,
हर पल जिसने अनदेखा किया वीरानगी में भी मेरी मौजूदगी को
चाहता रहा ये बेजार दिल हर लम्हा बस उसी का साथ !


किसी से अलगाव की पीड़ा दिल मेरा सहता आया है
स्वप्नद्रष्टाओं का महल जो हमेशा से ढहता आया है
फिर, कुछ 'पाने' का गम क्यों मैं दिल से बांधे रखूँ
जबकि मेरा हर 'पाना' सिर्फ मेरा 'खोना' है, तो


मेरा 'होना', ना 'होना' मेरी पहचान नहीं
मैं कहीँ होऊँ, हर जगह मेरा 'होना' है !



- "प्रसून"

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