Thursday 23 August 2007

अँतड़िया की इज़्ज़त


स्तन से चिपटे बच्चे को
जब देखा था
निश्चिन्तता से वो
पी रह था दूध,
और ऊंघ रही थी
उसकी भिखारिन माँ
फटी- फटी- सी उसकी ब्लाउज़
और झांकती- मटमैली पेटीकोट
बयाँ कर रही थीं
कि कितनी हो चुकी हैं सस्ती
दो जून की रोटियाँ !
- "प्रसून"

1 comment:

रंजू भाटिया said...

VERY TOUCHING ..दिल को छू लेने वाली पंक्तियां हैं यह ..शुक्रिया