Friday, 24 August 2007

वेश्या की व्यथा


आता है हर रोज़ इक नौजवान
खेलने इस शरीर से
जाता है हर कोई जीतकर
अपने हिसाब से
आया नहीं आज तक
ऐसा कोई जवान
छुआ हो जिसने कभी
मेरे मर्म को
आता है हर कोई यहाँ
रुपयों के बल पर
आया नहीं कभी
कोई बनकर मर्द

जिसने खेलने के पहले
या फिर बाद ही में
पूछ ली हो
इस मैदान की हालत !



-"प्रसून"

2 comments:

Keerti Vaidya said...

BHUT ACHA SUBJECT AUR EK DARD KO PESH KIYA HAI..JO KABHI SHAYAAD USSE KABHI KOI NAHI PUCHTA ...

रंजू भाटिया said...

bahut bahut sundar likha hai aapne