इंसानों के मकाँ वहाँ बहुत हैं !
जहाँ रहने को इन्साँ बहुत हैं !!
तार- तार हो जायेंगे यहाँ पंख हमारे
उड़ने को दूसरे आसमाँ बहुत हैं !
जिन्होंने पाए थे ख़ुशी के चांद लम्हे
आजकल अपनों से वे परेशाँ बहुत हैं !
खोज रहे थे खुसूसियत का नगमा
पर खाक छानते तक हैराँ बहुत हैं !
पर खाक छानते तक हैराँ बहुत हैं !
छल- प्रपंच, झूठ- फरेब, जाति- धर्म
ऐसे ही 'संभ्रात' विचार यहाँ बहुत हैं !
'प्रसून' नहीं मिलेगा यहाँ यूं ही करार
क्योंकि इंतज़ार के इम्तहाँ बहुत हैं !
- "प्रसून"
1 comment:
जिन्होंने पाए थे ख़ुशी के चांद लम्हे
आजकल अपनों से वे परेशाँ बहुत हैं !
बहुत खूब ..ब्लॉग का रंग आंखो में चुभता है थोड़ा इसे हल्का करे :)
बहुत सारी शुभकामनाओं के साथ
रंजना [रंजू]
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