अपनों की करनेवाली इबादत नहीं मिलती !
वैसे भी अब ऐसी शराफ़त नहीं मिलती !!
कुछ करने की सोचें कैसे उनकी खातिर
बेगम से ऐसी इजाज़त नहीं मिलती !
फ़ीकी हँसी दिखाकर याद कर लेते हैं बचपन
बचपन में जो की, शरारत नहीं मिलती !
उन दिनों होते रहे थे कितने ही गिले- शिकवे
अब करने के लिए कोई शिकायत नहीं मिलती !
रिश्तेदारी से बचके पहुँचे हैं इस मकाम पे
जहाँ चादर- ए- प्यार की हिफाज़त नहीं मिलती !
सिमट गए 'प्रसून' अपने बीवी- बच्चों तक यूँ
कि अपनी छत तक सलामत नहीं मिलती !
- "प्रसून"
4 comments:
Mallik
Bahut Hi Behatareen Hai
behatareen
mauzun alfaaz nahin hai mere paas
vyakt karne ke liye
it's super super realy
keep it up
~!~amit k. sagar~!~
फ़ीकी हँसी दिखाकर याद कर लेते हैं बचपन
बचपन में जो की, शरारत नहीं मिलती !
बहुत ही सरल तरीके से आपने हाकीकत -बयानी की है. बहुत खूब.
thanx for your comment here everybody!
हर ग़ज़ल अपने-आप में ज़बरदस्त है,पर.......
अपनों की करनेवाली इबादत नहीं मिलती !
वैसे भी अब ऐसी शराफ़त नहीं मिलती !!............बहुत बढ़िया
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